धान की नर्सरी का पीला पड़ना और विकास अवरुद्ध होना

1. पोषक तत्वों की कमी
• नाइट्रोजन की कमी
○ लक्षण: सामान्य पीला पड़ना (पीली पत्तियाँ), विशेषकर पुरानी पत्तियों में।
○ उपाय: यूरिया या अन्य नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों (जैसे DAP) का प्रयोग करें।
• लौह (आयरन) की कमी
○ लक्षण: पीला पड़ना सबसे पहले नई पत्तियों से शुरू होता है, लेकिन नसें हरी रहती हैं (इंटरवेइनल क्लोरोसिस)। यह समस्या क्षारीय या जलभराव वाली मिट्टी में अधिक आम है।
○ उपाय: 0.5% फेरस सल्फेट + 0.25% साइट्रिक एसिड का छिड़काव करें।
2. जल प्रबंधन संबंधी समस्याएँ
• अत्यधिक सिंचाई / खराब निकासी
○ इससे जड़ों को नुकसान और ऑक्सीजन की कमी होती है → पत्तियाँ पीली पड़ती हैं।
○ उपाय: उचित जल निकासी सुनिश्चित करें, लगातार पानी भराव से बचें।
• कम सिंचाई / सूखा तनाव
○ पौधे मुरझा जाते हैं और पीले पड़ते हैं; वृद्धि धीमी हो जाती है।
○ उपाय: जल जमाव से बचते हुए उपयुक्त नमी बनाए रखें।
3. कीट और रोगों का प्रकोप
• रूट–नॉट निमेटोड या तना छेदक (प्रारंभिक अवस्था में)
○ इससे जड़ों का विकास प्रभावित होता है → पौध की वृद्धि रुक जाती है।
• शीथ ब्लाइट, बैक्टीरियल ब्लाइट
○ ये रोग पौध को प्रभावित कर सकते हैं, हालांकि आमतौर पर बाद की अवस्था में अधिक होते हैं।
• उपाय: उपयुक्त कीटनाशक/फफूंदनाशकों का प्रयोग करें; बुवाई से पहले बीजों का फफूंदनाशी से उपचार करें।
4. मिट्टी से संबंधित समस्याएँ
• मिट्टी की अम्लता/क्षारीयता
○ यह पोषक तत्वों के अवशोषण को प्रभावित करती है।
○ उपाय: मृदा परीक्षण के बाद अम्लीय मिट्टी में चूना और क्षारीय मिट्टी में जिप्सम डालें।
• हानिकारक तत्व (लौह विषाक्तता, जिंक की कमी)
○ लौह विषाक्तता: पत्तियाँ कांस्य रंग की हो जाती हैं।
○ जिंक की कमी: पौधे छोटे होते हैं और पत्तियों पर भूरे धब्बे आते हैं।
○ उपाय: जिंक सल्फेट (5–10 किग्रा/हेक्टेयर) का प्रयोग करें या जल निकासी सुधारें।
5. निम्न गुणवत्ता वाले बीज / अत्यधिक बीज दर
• इससे अंकुरण कम होता है और पौधों की वृद्धि असमान होती है।
• उपाय: प्रमाणित बीजों का उपयोग करें, नर्सरी में बीज दर अधिक न रखें।